अर्ज़ है
टुटा है दिल किसी से नाराज़ थोड़ी है,
जवान हो चूका है ये आग़ाज़ थोड़ी है,,
कुछ शिकवे कुछ शिकायत कुछ है आरजू,
छुपाया इन लबो ने कोई राज़ थोड़ी है,,
जलाये थे दिए हमने भी उम्मीद की किरण से,
पर तकदीर को किसी उम्मीद का कोई लिहाज़ थोड़ी है,,
खली जो सबको वो मुसकुराहट थी मेरी,
मेरे अश्को पे किसी को ऐतराज़ थोड़ी है,,
न उठे दिल में अरमान न कोई आरजू,
ऐसा कोई नुस्खा कोई इलाज़ थोड़ी है,,
और शिकवा है ये कुछ टूटे हुए सपनो का,
मेरी कलम के ये अलफ़ाज़ थोड़ी है,,,